फ़ना के बाद: Ghazal
अश्क-ए-सागर में डूबने से ज़रा शोर तो होगा, मेरी इस ख़ुदकुशी पे रोया कोई और तो होगा | रास्ते सुनसान हैं, मेरी मंज़िल भी दूर है, सांस लेने को बियाबां में कहीं ठौर तो होगा | दुश्मनी ही सही, कोई तो रिश्ता हो कम से कम, हर मुख़ालिफ़ ने किया इसपे कभी गौर तो होगा | मेरा हर आंसू है मेरी ही ख़ामोशियों की जुबां, नहीं लफ़्ज़ों में अगर, अश्कों में वो ज़ोर तो होगा | एक ख्वाहिश थी लिख सकूँ मैं ख्वाहिशों की इक ग़ज़ल, कि फ़ना बाद मेरा ज़िक्र किसी ओर तो होगा || — संगीता