रात की स्याही
बोझिल शामें, ऊंघती रातें, ख्वाहिशें बरसतीं हैं आहत आँखों की साज़िश से साँसें बहकतीं हैं कतरा-कतरा होकर मेरी आवाज़ बिखरती है, मुझसे ही होकर रात, हर रात गुज़रती है, फ़िर…
बोझिल शामें, ऊंघती रातें, ख्वाहिशें बरसतीं हैं आहत आँखों की साज़िश से साँसें बहकतीं हैं कतरा-कतरा होकर मेरी आवाज़ बिखरती है, मुझसे ही होकर रात, हर रात गुज़रती है, फ़िर…