Daily Archives: September 26, 2016

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे... प्रश्न लिए अस्तित्व का जो छोड़ आए घर-चौबारे, पहुँचा वो आंदोलन अब मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे ! जिन कन्धों पर हल थे कल अब जबरन बैठी लाठी, हमने कभी ना देखी ऐसी कृषकों की कद-काठी ! संशय में है देश पड़ा, अब पर्दे में है सब कुछ, सच के सौ-सौ चेहरे देखे फिरभी करते खुस-फुस ! अपनी-आपनी ज़िद पे हैं मनमर्जी के हैं किस्से, भूखों के हक़ की रोटी जाती समर्थ के हिस्से ! युद्ध छिड़ा है बेमतलब वर्चस्व चढ़ा है दांव, खाली दामन लेकर कैसे लौटेंगे अब गाँव ? हुआ पुराना 'जन गण मन' नूतन किस्से रच डालो, 'जन' तुम रखो और 'गण' वो 'मन' के हिस्से कर डालो | बंट गये रंग तिरंगे के सब हरा, शुभ्र और केसरी, गति हुई अवरुद्ध चक्र की लड़े कृषक और प्रहरी | कुछ तटस्थ कुछ ढ़ोंगी मिलकर चला रहे हैं देश, सिंहासन पर विराजते, भेड़िये बादलकर वेश | "बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे" कह गये शायर 'फैज़', राजनीति भाये ना हमें फिर भी आता है तैश |

बंज़र ज़मीं पे अब सुकून और नहीं थके थके से पाँव, नया दौर नहीं धूप में क्या छाँव की करूँ ख़्वाहिश हर शय है रेत-रेत, कहीं ठौर नहीं …

Read more

1/1