ज़िन्दगी: Ghazal
ज़िन्दगी फ़िर क्यों खींचती हसीं ख़्वाबों की तरह, कुछ उलझे से सवालों के जवाबों की तरह. हुए तुमसे जो मुख़ातिब तो भूले अपने रंजो-ग़म, डायरी में रखे उन सूखे गुलाबों…
ज़िन्दगी फ़िर क्यों खींचती हसीं ख़्वाबों की तरह, कुछ उलझे से सवालों के जवाबों की तरह. हुए तुमसे जो मुख़ातिब तो भूले अपने रंजो-ग़म, डायरी में रखे उन सूखे गुलाबों…