Daily Archives: January 31, 2018

  खुली बसंत बयार हूँ मैं ठहरे से तुम हो क्यों? उन्मत्त नदी की धार हूँ मैं सहमे से तुम हो क्यों? बह जाना संग तुम्हारे अब जलधार भले विपरीत…

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