अनुभूति और अभिव्यक्ति
कल्पनाओं के पाँखी उड़ गए संभावनाओं के पंख पसार बंजर मन की परती में अंकुरने से भावनाओं ने किया इन्कार ! यथार्थ की दुपहरी, बिखेर गयी धूप कर्कश जेठ सी…
तुम और मैं
I don’t worship and I’m called an atheist, but I share a special bond with my God, which makes me see Him more as a friend than a Superpower. My…
धुरी और परिपथ
पृथ्वी का घूमना अपनी धुरी पर या फिर एक निश्चित परिपथ में परिक्रमा सूर्य की, — विज्ञान के इस सत्य को जीने की नियति है मेरी भी निरंतर…. अपनी अस्मिता…
Sands of Time
This poem is my first ever English poem as an amateur poet, written about 30 years back when I was a teen and studying in class 12th. Time leaves all…
अक्स और आँखें
When she was born, everyone said that she didn’t look like me! But, I made her my replica with time. 🙂 This poem is dedicated to my daughter Maitreni. .…
Between the lines…
I am the unreadable between the lines, The brew to turn you into the finest wines The strength to push you towards whites The restraint to stop you step into…
रात की स्याही
बोझिल शामें, ऊंघती रातें, ख्वाहिशें बरसतीं हैं आहत आँखों की साज़िश से साँसें बहकतीं हैं कतरा-कतरा होकर मेरी आवाज़ बिखरती है, मुझसे ही होकर रात, हर रात गुज़रती है, फ़िर…
मेरे हिस्से का दर्द
पीड़ा झेलती मेरी अनुभूतियाँ और झेलते हैं दर्द मेरे शब्द भी, तब जाकर कहीं रचित होती है मेरी व्यथा की कविता | घुमड़ते मेघों – आषाढ़ बनकर ही…
सृजन का सच
हर सुबह जब झरता है पत्तों से अँधेरा हवा चुनती है बूँदें ओस की और, गूंजता है हवाओं में राग भैरव धूप की पहली, कुंवारी किरण भेदना चाहती है वातावरण…
फ़ना के बाद: Ghazal
अश्क-ए-सागर में डूबने से ज़रा शोर तो होगा, मेरी इस ख़ुदकुशी पे रोया कोई और तो होगा | रास्ते सुनसान हैं, मेरी मंज़िल भी दूर है, सांस लेने को बियाबां …
हौसलों की हार…
हौसलों के पंख लगाकर उड़ने की बातें करते थे हम कल तक, आतंक के अट्टहास तले, रेंगते, सरकते उन्ही हौसलों को देखा है अभी| रक्तरंजित सड़कों के बीच जीने की…
मंज़िलें: Ghazal
वक़्त ने करवट बदली और आईने बदल गए, चेहरे के शिकन के संग सारे पैमाने बदल गए | कुछ इस तरह से रात भर हम लिखते रह गए, कि सुबह…
ख़्वाहिशें: Ghazal
ख़्वाहिशें कहना है बहुत कुछ मगर, आग़ाज़ ना मिला, पंख हैं अब भी, तो क्या, परवाज़ ना मिला | बिखरे हुए सरगम मैं सजाती रही ताउम्र, सुर सजे ही …
The Supernumerary Rainbow ?
I was living in gloom until the day I found the supernumerary rainbow and got enlightened with the vivacious aura of the Almighty! Life turned into sheer bliss as I…