I gazed into her seasoned eyes, She said, “A quick glance should suffice. But never-ever do this to anyone, Co’z your quietude isn’t meant to be gone. All you are deemed to behold down, So that you can ignore all frowns.” But I didn’t listen to my Maa I dared, stared all eyes, got stigma. […]
यात्रा (Yatra)
मेरी यात्रा अविरल, हर पल मैं चली छोड़ ऐश्वर्य, महल मुड़कर देखा बस एक बार कुछ टूटा था, जो छूटा था मैं आहत थी और शब्दहीन, तुम मुखर बड़े और प्रखर खड़े | कुछ कहा-अनकहा बाकी था मैं कह न सकी, तुम सुन न सके मैं कर न सकी कुछ अभिव्यक्त तुम सुन न सके […]
अमूल्य
She’s either called a deity or compared to priceless substances, but, a woman is always considered as an ‘object of desire’ and is expected to sacrifice herself for her family and society. She has to pay the price to be called ‘priceless’. My Hindi poem portrays the complexities and paradoxes of a woman’s life. आँखों […]
द्वय (Dualism)
Bible says, this mankind is a result of the mistakes made by Eve in the Garden of Eden. When Eve tasted the forbidden apple, she got tempted and provoked Adam to commit sin, resulting in her punishment of suffering from birth pangs. Bible specifies carnal relationships as prohibited sins and states them the weakness of […]
धुरी और परिपथ
पृथ्वी का घूमना अपनी धुरी पर या फिर एक निश्चित परिपथ में परिक्रमा सूर्य की, — विज्ञान के इस सत्य को जीने की नियति है मेरी भी निरंतर…. अपनी अस्मिता की तलाश में आत्मकेन्द्रित होकर स्वयं की धुरी पर घूमना और कर्तव्यों की आकाशगंगा में नियति द्वारा तय एक अज्ञात, अबूझ परिपथ पर एक नियोजित […]
मेरे हिस्से का दर्द
पीड़ा झेलती मेरी अनुभूतियाँ और झेलते हैं दर्द मेरे शब्द भी, तब जाकर कहीं रचित होती है मेरी व्यथा की कविता | घुमड़ते मेघों – आषाढ़ बनकर ही रहो सावन बनकर मत बरसो इन आँखों से, रुपहले तारों से कह दो मत झाकेँ असमय इन श्याम सुनहरी अलकों से | क्यों शोषण […]
सृजन का सच
हर सुबह जब झरता है पत्तों से अँधेरा हवा चुनती है बूँदें ओस की और, गूंजता है हवाओं में राग भैरव धूप की पहली, कुंवारी किरण भेदना चाहती है वातावरण में फैली वासना की गहरी धुंध; चाहती हूँ मैं भी, बिखेर दूँ हर ओर ताज़ी सुगंध | पर, स्याह किरणों से कैसे लिखूँ सुनहरे छंद, […]
हौसलों की हार…
हौसलों के पंख लगाकर उड़ने की बातें करते थे हम कल तक, आतंक के अट्टहास तले, रेंगते, सरकते उन्ही हौसलों को देखा है अभी| रक्तरंजित सड़कों के बीच जीने की जद्दोज़हद में खिसकते, घिसटते उन्ही हौसलों को देखा है अभी| शवों के ढेर जिनपर होती नित नई राजनीति चिताओं पर सिंकती राजनीतिज्ञों की रोटी शहीदों […]