बोझिल शामें, ऊंघती रातें, ख्वाहिशें बरसतीं हैं आहत आँखों की साज़िश से साँसें बहकतीं हैं कतरा-कतरा होकर मेरी आवाज़ बिखरती है, मुझसे ही होकर रात, हर रात गुज़रती है, फ़िर भी मेरी आँखों में नहीं नींद बसती है | कानों को बहरा कर जाता सन्नाटे का शोर, मुझे बुलाता जहां जहां, मैं चल देती […]
फ़ना के बाद: Ghazal
अश्क-ए-सागर में डूबने से ज़रा शोर तो होगा, मेरी इस ख़ुदकुशी पे रोया कोई और तो होगा | रास्ते सुनसान हैं, मेरी मंज़िल भी दूर है, सांस लेने को बियाबां में कहीं ठौर तो होगा | दुश्मनी ही सही, कोई तो रिश्ता हो कम से कम, हर मुख़ालिफ़ ने किया इसपे कभी गौर तो होगा […]