सृजन का सच
हर सुबह जब झरता है पत्तों से अँधेरा हवा चुनती है बूँदें ओस की और, गूंजता है हवाओं में राग भैरव धूप की पहली, कुंवारी किरण भेदना चाहती है वातावरण…
फ़ना के बाद: Ghazal
अश्क-ए-सागर में डूबने से ज़रा शोर तो होगा, मेरी इस ख़ुदकुशी पे रोया कोई और तो होगा | रास्ते सुनसान हैं, मेरी मंज़िल भी दूर है, सांस लेने को बियाबां …
हौसलों की हार…
हौसलों के पंख लगाकर उड़ने की बातें करते थे हम कल तक, आतंक के अट्टहास तले, रेंगते, सरकते उन्ही हौसलों को देखा है अभी| रक्तरंजित सड़कों के बीच जीने की…
हसरतें: Ghazal
कम-से-कम हम्हीं से उन्हें कुछ गिला तो है शुक्र है कि आज, कोई ग़ुल खिला तो है इस तरफ हवा का रुख़ नहीं तो क्या हुआ एक ही सही, …
मंज़िलें: Ghazal
वक़्त ने करवट बदली और आईने बदल गए, चेहरे के शिकन के संग सारे पैमाने बदल गए | कुछ इस तरह से रात भर हम लिखते रह गए, कि सुबह…
ख़्वाहिशें: Ghazal
ख़्वाहिशें कहना है बहुत कुछ मगर, आग़ाज़ ना मिला, पंख हैं अब भी, तो क्या, परवाज़ ना मिला | बिखरे हुए सरगम मैं सजाती रही ताउम्र, सुर सजे ही …