सावन और संगीत: ऋतुरंग कविता
सावन की प्रथम फुहारों संगजब गूँजी फिर स्वर-लहरीघन के उदात्त परों में छिपहुई मय सी स्याह दुपहरी श्रावण ऋतु भयी ऐसी बैरनमैं * गाऊँ कैसे कजरी ?आँखों में घन…
सावन की प्रथम फुहारों संगजब गूँजी फिर स्वर-लहरीघन के उदात्त परों में छिपहुई मय सी स्याह दुपहरी श्रावण ऋतु भयी ऐसी बैरनमैं * गाऊँ कैसे कजरी ?आँखों में घन…