दो क़दम चली मैं..
बस दो क़दम ही तो..और जी लिया एक समूचा जीवन बस दो डग भरकर
जैसे वामन ने नाप ली थी समूची सृष्टि बस तीन पग में
महाबलि का शीश न होता तो दो ही डग में नप गए थे धरती और आकाश
मैं भी.. एक पाँव से घूमी चकरघिन्नी सी अपनी धुरी, अपने अक्ष पर
तो दूसरा पाँव उठाकर चली अनवरत.. एक पूर्व नियोजित परिपथ पर
घूमती रही.. चलती रही.. मृगतृष्णा में सूखती रही
सुखाती रही अपनी रूखी-सूखी काया में बंद नमी l
*
विज्ञान कहता है..
हमारी ये सूखी, निसठ सी दिखती देह साठ प्रतिशत पानी से भरी है
पर, जल तो तिरोहित है..’सैचुरेटेड सरफेस ड्राई’*- शुष्क सतह संतृप्त नमी
जल प्रकट होता है कुछेक की जीभ से क्षुधा और वासना की राल बनकर
और बाकियों की आँखों से अप्राप्य की तृष्णा वाले आँसू बनकर
फिर शुरू होता है एक सतत प्रवाह.. बहते हैं कई सागर.. समानांतर
राल और आँसू बहाते लोगों के बीच उपजे संघर्ष में बहता है रक्त निरंतर
मानो चकमक पत्थरों ने घर्षण कर आग उगली हो l
*
कहीं मैं सूख न जाऊँ..
राल, अश्रु और रक्त न हों तो सूख जाते हैं हम, छूट जाता है सुख
इसलिए, पहले डग में मैंने नापा राल बहाने वालों को
और दूसरा डग भरते ही फिसल गई एक बहती धारा में
आँसुओं की अविरल धारा थी और रिसता था रक्त बीच बीच में
कुछ भी न था सुखकर, फिर भी सूखी नहीं मैं
भीगी रही, रिसती रही, रचती रही कविता
तमस का संगीत झरा निर्झर बनकर l
*
जल से प्रेम है मुझे..
पोखर से नदी, नदी से सागर, सागर से महासागर
भरती रही अपने रिक्त मन का खाली कलश दो डग गहरे उतरकर
और बहती रही तीव्र जलधार में स्वयं, खाली कलश बनकर
जल के प्रेम में इतनी पड़ी कि सूखकर भी नम थी, भरकर भी कम थी
पर सागर भी सूखता है कभी न कभी
जैसे साठ प्रतिशत जलप्लावित* काया का ममीफ़िकेशन* किया हो मिस्रियों ने
पानी भाप बनकर उड़ जाता, पीछे नमक छोड़ जाता है l
*
याद आता है मुझे..
जब बचपन में कोलतार से सड़क बनती देखी थी
कोलतार की एक काली, भयावह धार ने मेरा एक जूता लील लिया था
जल.. आज फिर सूखकर गाढ़ा, काला, चिपचिपा सा हो चला है
कोलतार सा लसलसा, एक घृणित सा सैलाब
धीरे धीरे बहता, सब कुछ निगलने को आतुर
कुबेर के सुनहरे वस्त्र पहनकर यम पाताल से निकला.. धरती घूमने
धरती दिग्भ्रमित थी और मैं भी l
*
मृत्यु के पदचाप सुने मैंने..
दो डग भरे और समूची सृष्टि नाप गई.. भागती रही.. मृत्यु से भयाक्रांत
मनु की नाव चुराई.. अपनी पीढ़ियों को बचाने की जुगत भिड़ाई
काली का रूप धरा, पर राल-रक्त टपकाती जिह्वा न थी मेरे पास
गले में मुण्डमाल नहीं, सुच्चे मोतियों की लड़ सजाए
मोनालिसा की कोरी आँखें और गूढ़, रहस्यमई मुस्कान लिए
अपने सिंड्रेला वाले साइज चार पाँवों में वामन के पग लिए
ना जाने कितने प्रकाशवर्ष चली, अपरिमित आकाशगंगाओं के आर-पार l
*
थक गई हूँ मैं..
कोलतार की नदी अब भी घुमड़ रही है, पर अब रुकी सी दिखती है
भीतर कहीं मृत्यु अब भी बजबजाती है उसमे, बुलबुले सी, उबलती सी
मनु की नाव में दरारें पड़ गईं हैं, पर मेरी संतति अब भी सुरक्षित है
उन्हें बचाने की चेष्टा में ही तो भागी थी दो क़दम
नदी से महासागर, शहर से महानगर..
दो वर्षों तक भागती रही.. पर, मात्र दो क़दम ही उठाए
दो वामन पग धरे, दो टीके लिए महामारी के l
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*“सैचुरेटेड सरफेस ड्राई‘- शुष्क सतह संतृप्त नमी (SSD, Saturated Surface-dry) : एक ऐसी रासायनिक अवस्था जब किसी अत्यधिक गीले पदार्थ की ऊपरी सतह बिलकुल सूखी कर दी जाए, ताकि नमी सुरक्षित रहे !
*जलप्लावित काया : पानी में डूबा शरीर !
*ममीफ़िकेशन (Mummification) : प्राचीन मिस्त्र ( Ancient Egypt) में मृत शरीर को संरक्षित करने का तरीका !
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Image courtesy: A painting, “Manikarnika” by my sister, the late Vineeta Mishra
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