मेरे ख़याल मेरे ख़याल
मेरे ख़यालों का ये सागर जो गहरा होता,
लहरों तले भी तूफ़ां सा एक ठहरा होता |
चिराग मैं जलाती यादों के हर घड़ी जो,
अरमान कुछ सुलगते, मंज़र सुनहरा होता |
जो चाँद आसमां में इतराते ना यूँ फिरता,
तो ज़ख़्म चकोरी का फिरसे ना हरा होता |
परवाज़ मैं भी करती, ललकारती हवा को,
साँसों पे ग़र ना बंदिश, ना कोई पहरा होता |
रब ने है क्यों बनाया मुझको ही इतना नाज़ुक,
ग़म मुझ तलक पहुंचते, जाने क्यों दुहरा होता |
मक़ता बिना अधूरी, कहती हूँ फिर ग़ज़ल मैं,
कि इश्क़ नामुक़म्मल, कहते हैं गहरा होता |
Glossary:
*परवाज़: Flight,
*मक़ता: The last sher of a Ghazal having the poet’s name,
*नामुकम्मल: Incomplete.
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खूब सूरत उम्दा तरीन शब्दों की अदाकारी
you are so talented !!!