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मौसमों के साथ लोगों को बदलना आ गया
आँधियों के बीच हमको भी संभलना आ गया
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‘गर उफनती है नदी तो बादलों का क्या कसूर
देख धरती की तपिश उनको पिघलना आ गया
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जल के मर मिटते पतंगे देखकर शमा को भी
ख़ाक में ख़ुद को मिलाकर इश्क़ करना आ गया
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कर चुके जिसकी इबादत आज तक लाखों दफ़ा
उस ख़ुदा को बेरहम हमको भी कहना आ गया
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देखकर हमको चटक जाते थे आईने, तो क्या
आईने के बिन हमें आखिर संवरना आ गया
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पत्थरों को रौंदकर बहती नदी से पूछिए
क्यों उसे सागर पे जां-निस्सार करना आ गया
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लोग पत्थरदिल वो थे, पत्थर उठाते ही रहे
चोट खाकर हमको भी अशआ’र कहना आ गया
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स्याह रातें करते हैं रोशन ‘संगीता’ के सुख़न
चाँद को अब उसके लफ़्ज़ों में यूँ ढलना आ गया |
Glossary :
‘गर : Short form of अगर
तपिश : Heat
इबादत : Worship
जां-निसार : Sacrifice
अशआ’र : Couplets in poetry
सुख़न : Poetry
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