ग्रीष्म गर्जना : ऋतुरंग कविता
ग्रीष्म गर्जना कोयल कूकी अमराई मेंगा रही मारवा राग,सूरज बन बैठा अग्निकुंडबरसाता है बस आग ! हो रहा गगन में अश्वमेघहै रश्मिरथी इस पार,सातो घोडों पर हो सवारचल पड़ा क्षितिज…
सावन और संगीत: ऋतुरंग कविता
सावन की प्रथम फुहारों संगजब गूँजी फिर स्वर-लहरीघन के उदात्त परों में छिपहुई मय सी स्याह दुपहरी श्रावण ऋतु भयी ऐसी बैरनमैं * गाऊँ कैसे कजरी ?आँखों में घन…