ANHAD NAAD अनहद-नाद ANHAD NAAD
नभ में उड़ते बादल जो नीले से दिखते हैं
या सागर में अनगिन नीली लहरें उठती हैं
नीलापन भ्रम, ज्यों मरुछाया जल विहीन है
नीलवर्ण बस गगन, शेष सब रंगहीन हैं
विस्तृत नभ जो श्वेत से नीलाभ हुआ जाता है,
अपनी प्रतिच्छाया से सबको ही रंगता जाता है |
होकर भी निर्बाध, नहीं अस्तित्व है जिसका
है निहित सबमें, पर शून्य ही तत्व है उसका
न रहकर भी रहता अपनी प्रतिच्छाया में
ना स्वरूप, ना बाद्य किसी सीमित काया में
शून्य है पर शब्द, ध्वनि और झंकार है
सूक्ष्म, पर वृहद, नादस्वर की टंकार है |
अस्तित्वहीन होकर भी सर्वत्र विद्यमान जो
रंग देता बादल, समुद्र, सब एक ही समान वो
विस्तार है बस नील का विष का विषादवर्ण है
बहता जल उड़ता जलद सब उससे नीलवर्ण हैं
शब्दों को गति देता करता प्रतिध्वनित व्योम है
शून्य है पर पूर्ण है असाध्य साधना, ओम् है |
मुरलिधर कृष्ण है, ‘नील नभोमंडल सम श्याम
जिसकी बांसुरी की धुन ही स्वर का दूसरा नाम
कृष्ण की वो देह नश्वर, हो चुकी अब मिट्टीमय
गूँजते सरगम हैं उसके व्योम में, सृस्टि में
उसकी धुन अक्षुण अमिट, उन वारिदों के पार
जिसपे आधारित हैं स्वर, स्वयं वो निराधार |
सब है निराधार फिर मैं क्या हूँ ? कौन हूँ ?
अस्मिता मेरी तमस में गौण है, मौन हूँ
मीरा जैसा आँचल मेरा, बहता जल ही तो है
बेरंग जल में ड़ूबी काया निलोत्पल ही तो है
विष भी न पी सकी, नीलकंठ न थी मैं शिव सी
शुभ्र आँचल को मलिन, विषाक्त क्यों कर बैठी ?
अब नहीं है कृष्ण पर संगीत है, तो मैं भी हूँ
“नील नभोमंडल सम श्याम” अब बस मैं ही हूँ
मैं ही अनहद-नाद हूँ, ध्वनि हूँ मैं इस शून्य में
वायु के प्रवाह में हूँ, जल की हर एक बूँद में
भस्म होकर भी जलूँगी अग्नि की दहक में मैं
सुगंधित, सुवसित रहूँगी मिटटी की महक में मैं |
रहूँगी ब्रह्माण्ड में पंचतत्वों में होकर समाहित
शब्द सी और ध्वनि सी, रहूँगी बनकर संगीत |
“Anhad Naad”, the Primordial Sound is the ultimate energy which resides in the fifth element, Space which is insubstantial. In spite of being abstract and abstruse, the space holds the sound, the acoustics of the entire universe.
“Anhad”, literally means boundless and “Naad” is sound. Our scriptures, especially Vedas and Upnishads have transcribed “OM(ॐ)“ as Anhad Naad, the ultimate sound, the sound which resides in Space (आकाश) which is nonexistent, thereby stated as “Shoonya (शून्य)”, Zero. There begins the music…
Glossary:
मरुछाया : Mirage
प्रतिच्छाया : Reflection
निर्बाध : Boundless
निहित : Contained
नादस्वर : The essence of all sounds in music/An acoustic instrument like Shehnai.
सर्वत्र विद्यमान : Prevailing everywhere
विषादवर्ण : Blue, the colour of despair
“नील नभोमंडल सम श्याम” : Chhayawadi poet, Jayshankar Prasad depicted Lord Krishna’s visage as the blue sky.
वारिदों : Clouds
निलोत्पल : A blue lotus in Sanskrit
विषाक्त : Venomous
सुवसित : Fragrant
पंचतत्वों : The five elements, Earth, Water, Fire, Air and Space
This poem is my tribute to the Heavenly Soul of my sister, Vineeta who unfurled her mortal coils and merged into Anhad Naad on 15th of January 2020. The colour blue signifies the venom of Cancer she was intoxicated with. It’s the day of commemoration of a blessed painter, sculptress, singer and a person with a heart of gold.
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