सारंग: एक नयी काव्य विधा
कवयित्री कहकर पुकार लो
या कह लो मुझको शायरा
सीमा *से परे *हैं स्वप्न मेरे
ख़्वाबों का ना कोई दायरा
हैं शब्द मेरे, अस्तित्व मेरा
और काव्य शैली है छंदबद्ध
अल्फाज़ मेरे हैं हम-आहंग
कहते ख़ुद की जद्दोजहद
रस – सिक्त है अंतर्मन मेरा
संगीत – कवित्त में *बहता है
सादगी भरा अंदाज़-ए-सुख़न
अदब-ओ-तहज़ीब में रहता है
उस *हिंदी की मैं बेटी हूँ
उर्दू जिसकी हम -जाई है
भाषा है मेरी संस्कृत -निष्ठ
हिंदवी ज़ुबां पर छायी है
लेखनी मेरी प्राचीन बहुत
कितनी सदियाँ संजोये है
पर आब-ए-रवां क़लम मेरी
हर सफ़्हा-सफ़्हा भिंगोये है
निर्झर* से * चंचल छंद मेरे
दोहे,* चौपाई, व*अन्य प्रकार
अपनी नज़्मों *और ग़ज़लों से
हाल-ए-दिल करती हूँ इज़हार
है देवनागरी * लिपि * मेरी
कविता *की गति से*बहती हूँ
नस्तलिक़- शिकस्ते क्या जानूँ
अशआ’र मैं फिर भी कहती हूँ
कोमल, पर* दृढ़ हैं भाव मेरे
बुनती* हूँ जिनको शब्दों में
बेबाक-ओ-शीरीं सुख़न मेरा
उलझे *ना मस्नू’ई मुद्दों में
संगीत – मयी हूँ मैं, *किन्तु
स्तुतियाँ नहीं गाती किसी की
शायरी मेरी है ख़ुद-दारी
और, मेरी हर शय मौसीक़ी !!
ये मेरे आस्तित्व की कविता है और ये शैली मेरे दिल से निकली! इस video में मेरी उँगलियों में जो नायाब ज़ेवर है उसे एक प्यारी सी लड़की शैली ने मेरे लिये ख़ास तौर से बनाया है, मानों मेरे ही अस्तित्व का हिस्सा हो!
Thanks to Dr. Shelly Narula Gupta and Astitva Jewels for letting me flaunt a slice of my existence!
सारंग: हिंदी कविता की एक नयी विधा, एक ऐसी शैली जो मैंने विकसित करने की कोशिश की है। सारंग का अर्थ होता है, कई रंगों का समावेश ! यह कविता हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब की कविता है। एकता और अक्षुणता का काव्य । इसके कई रंग हैं जो मैं एक-एक कर आपको बताती हूँ ।
- यदि आपने मेरी उपर्युक्त सारंग कविता पढ़ी तो आपको हरेक छंद में दो प्रकार का भाषा सौष्ठव मिलेगा । पहली दो पंक्तियों में शुद्ध हिंदी का प्रयोग हुआ है तो बाद की दो पंक्तियों में उर्दू या हिंदवी का । पहली दो पंक्तियों में संस्कृतनिष्ठ/तत्सम शब्द हैं, तो बाद वाली में अरबी और फ़ारसी के लफ़्ज़ हैं ।
- हर छंद (चौपाई) की पहली दो पंक्तियों में जो बात कही गयी है, बाद वाली पंक्तियाँ लगभग उसी बात को दुहराती हैं। कहने का अर्थ है कि मैं एक ही बात को दो अलग तरह की भाषा में कहूँ और वह बिल्कुल नयी सी लगे। कहीं कहीं तो उलटबांसी भी हो जाए । पर यही तो इस सारंग का सौन्दर्य है।
- सारंग नये भारत की कविता है पर इसका परिचय बहुत प्राचीन है। विविधता में एकता की कविता ! इसलिए अगर आप चाहें तो इसमें कई अलग अलग भाषाओं और बोलियों का प्रयोग कर सकते हैं। यदि आप हिन्दी भाषी नहीं हैं तो अपनी मातृभाषा के शब्द हिन्दी के साथ प्रयुक्त कर सकते हैं ! बांग्ला, मराठी, उड़िया, पंजाबी, हरियाणवी, तमिल, मलयालम.. या फिर मैथिली, भोजपुरी, अंगिका, वज्जिका, अवधी, ब्रजभाषा.. सारी भाषाओं और बोलियों का स्वागत है। हम नये शब्द सीखेंगे और हिन्दी को समृद्ध बनायेंगे।
उदाहरण के तौर पर एक मज़ाहिया मुक्तक…जो सारंग का एक हल्का फुल्का रूप है
हम *हिंदी *दिल**के *भोले
उर्दू, जो इश्क़ सर चढ़ बोले
इंग्लिश *में..प्रेपरेशंस**पूरी
पर, भेजा फिरे*तो भोजपुरी!
अब कहिये.. मैं कवयित्री हूँ या शायरा ?? 🙂
– संगीता मिश्र
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संस्कृत शब्दार्थ
रस- सिक्त : रस में डूबा
संस्कृतनिष्ठ : संस्कृत भाषा के प्रति श्रद्धा रखना
देवनागरी लिपि : हिंदी, संस्कृत आदि भाषाओं को लिखने की शैली
स्तुतियाँ : गुणगान; प्रशंसा
अरबी / फ़ारसी लफ़्ज़ों के मायने
हम-आहंग : एक साथ, परस्पर, गुथा हुआ
जद्दोजहद : प्रयत्न, कड़ी मेहनत
अंदाज़-ए-सुख़न : कविता की शैली, स्टाइल ऑफ पोएट्री
अदब-ओ-तहज़ीब : शिष्टाचार, तौर तरीके
हम-जाई : बहन, एक साथ जन्मीं स्त्रियाँ
हिंदवी : हिंदुस्तानी, भारत में बोली जाने वाली उर्दू मिश्रित हिंदी
आब-ए-रवां : जल का प्रवाह, बहता पानी
सफ़्हा-सफ़्हा : पन्ने पन्ने, किताब के पृष्ठ
नस्तलिक़ : अरबी भाषा की लिपि
शिकस्ते : फ़ारसी भाषा की लिपि
अशआ’र : शेर का बहुवचन
बेबाक-ओ-शीरीं : निडर और मधुर
सुख़न : कविता
मस्नू’ई : बनावटी, कृत्रिम
शय : वस्तु, पदार्थ, चीज़
मौसीक़ी : संगीत
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Lovely Post!