कुछ आब : एक ग़ज़लकुछ आब
कुछ आब सजाकर आँखों में, महताब से बातें करते हैं
सब बातें करते हैं लब से, हम ख़्वाब से बातें करते हैं
वो तल्ख़ ज़ुबां रखते, फिर भी तहज़ीब का दावा करते हैं
हम उनसे कुछ ज़्यादा अदब-ओ-आदाब से बातें करते हैं
औकात हमारी मत नापो यूँ देख हमारा सादापन
हम ख़ाक गलीचों पर बैठे, मेहराब से बातें करते हैं
वो सोने से चमकीले दिन और रेशम सी काली रातें
हर शाम वही यादें बुनकर, किमख़ाब से बातें करते हैं
‘संगीता’ के अशआ’र ये ज्यों परवाज़ फ़लक में भरते हैं
फिर लाख परिन्दे छोड़ महज़ सुरख़ाब से बातें करते हैं |
सब बातें करते हैं लब से, हम ख़्वाब से बातें करते हैं
वो तल्ख़ ज़ुबां रखते, फिर भी तहज़ीब का दावा करते हैं
हम उनसे कुछ ज़्यादा अदब-ओ-आदाब से बातें करते हैं
औकात हमारी मत नापो यूँ देख हमारा सादापन
हम ख़ाक गलीचों पर बैठे, मेहराब से बातें करते हैं
वो सोने से चमकीले दिन और रेशम सी काली रातें
हर शाम वही यादें बुनकर, किमख़ाब से बातें करते हैं
‘संगीता’ के अशआ’र ये ज्यों परवाज़ फ़लक में भरते हैं
फिर लाख परिन्दे छोड़ महज़ सुरख़ाब से बातें करते हैं |
Glossary:
आब : पानी /आँसू
महताब : चाँद
तल्ख़ ज़ुबां : तीखी /कड़वी ज़बान में बात करना
अदब-ओ-आदाब : इज्ज़त देना
ख़ाक गलीचों : मिट्टी, ज़मीन
मेहराब : बड़े मकान का गुम्बद
किमख़ाब : ज़री और रेशम से बुना कपड़ा (Brocade)
अशआ’र : ग़ज़ल के एक से ज़्यादा शेर
परवाज़ : उड़ान
फ़लक : आसमान
सुरख़ाब : एक दुर्लभ और कीमती लाल पंछी /बहुत ख़ास
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