“शीत के गीत”
सूरज भी अलसाया है आज
मेरे संग उठा दुपहरी,
कोहरे की चादर पर खींचे
वो लकीरें चन्द सुनहरी |
कानों में सरगम के बदले
पछवईया गाती सन-सन,
सर्दी हुई बिल्ली, देख उसे
काँपे ये खरगोशी मन |
पाले की मार पड़ी ऐसी
बगिया पर गिर गयी गाज,
हरियाली धूमिल हुई देख
कवि-मन-मयूर हुआ बाज |
मेरी चाय की प्याली थर्राती
उबली थी, झट हुई शीतल,
कुहरे की चाँदी यूँ बिखरी,
तन सोना, कर गयी पीतल |
सेलफ़ोन की घंटी भई बैरन
तडके बज उठी टन-टन,
मंजू फिर आज न आयेगी
संगीता! अब धो बरतन |
“शीत के गीत“”शीत के गीत“”शीत के गीत“
तेज़ तर्रार सर्द हवाओं में लहराती धूप की झीनी सी गुलाबी चादर और कुहरे की रजाई में दुबका बेचारा, ऊंघता सा सूरज…बगीचे में मस्ती से झूमते गेंदे और गुलदाउदी के फूल और बच्चों की ज़िद कि, “आज नहीं जाना स्कूल”…सुन्दर ऊनी कपड़े और रसोई में पकते रसियापात्रा और चावल के परांठे …धूप देखती माँ की रेशमी साड़ियां और सूखती उड़द-तिल की बड़ियाँ…न जाने कितनी सर्द-उष्म यादें…|
सर्दियों के कितने ही सुन्दर रंग देखे थे बचपन में..तब ये ऋतुएँ कुछ ज़्यादा ही सुन्दर नहीं होती थीं ?कितने सारे रंग और रस….नवरस…|
ऋतुरंग कविता की श्रंखला में प्रस्तुत है जाड़ों की कविता… “शीत के गीत“| इस श्रृंखला से बरसात और गर्मियों की कवितायेँ सही मौसम में पोस्ट कर चुकी हूँ, पिछले साल …
“ग्रीष्म गर्जना“ तथा “सावन और संगीत”
‘चौमासा’ या ‘ऋतुरंग’, हिन्दी साहित्य एवं संगीत की एक मान्य एवं लोकप्रिय काव्य/गीत शैली है ! इस विधा में कवि चारो ऋतुओं ( ग्रीष्म, वर्षा, शीत एवं वसंत ) के सौंदर्य का वर्णन करते हुए उन्हे मानवीय संवेदनाओं से जोड़ते हैं !
मैने भी अपने पाठकों के लिए ऋतुरंग लिखने का प्रयास किया है जिसमे मैने नवरसों का भी समावेश किया है ! आपको मेरी चारों कविताओं मे काव्य के सभी नौ रस या अनुभूतियां स्पष्ट अनुभव होंगी, जैसे …….शृंगार, करुण, हास्य, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत और शांत !
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