आज भी हिंदी.
समय की भीत पर अंकित सुनहरी रीत थी हिंदीरहीम और तुलसी ने गाया, मधुर वो गीत थी हिंदीकई नदियों के संगम से महानद जो हुई उद्भुतवो तत्सम, तद्भव की देशज-विदेशज…
दो क़दम चली मैं..बस दो क़दम ही तो..और जी लिया एक समूचा जीवन बस दो डग भरकरजैसे वामन ने नाप ली थी समूची सृष्टि बस तीन पग में महाबलि का…
समय की भीत पर अंकित सुनहरी रीत थी हिंदीरहीम और तुलसी ने गाया, मधुर वो गीत थी हिंदीकई नदियों के संगम से महानद जो हुई उद्भुतवो तत्सम, तद्भव की देशज-विदेशज…