अलविदा वीरांगना !
नाम : Bambi Mishra
जन्म : 10 मार्च, 2011
महाप्रयाण: 26 अक्टूबर, 2021
उम्र : अनंत काल
दस साल पहले जब वो हमारे घर आई, काली रुई की गोले जैसी, जैसे घुमड़ते बादलों का एक गोला घर में उमड़ आया और बरसने को बेचैन हो ! वो घर में तूफान मचाती रही और हमारे दिलों में घर करती रही! मेरी ये बेटी अपनी बहनों से थोड़ी अनोखी और बहुत अधिक दिलेर … दुनिया के लिए ख़तरनाक, पर हमारे लिए मासूम ! ऐसी ही थी मेरी बैंबी !
बैंबी (Bambi ) , वाल्ट डिज़्नी की ऐनिमेशन फिल्म का एक चरित्र, एक हिरण का बच्चा ! हमारे लिए वो एक हिरणी ही थी जो अपनी बड़ी-बड़ी मासूम पनियल आँखों से घूरती, कुँचालें भरती! पर दुनिया के लिए भेड़िये या चीते जैसी खूँखार, जो चाहे तो मिनटों में इंसान को चीर कर रख दे, धराशाई कर दे ! हम तो वैसे ही उसके प्यार में धराशाई थे !
“Mom! Don’t you think Bambi should also have a Sanskrit good name like us?” (मॉम ! हमारी तरह बैंबी का भी एक संस्कृत शुभ नाम होना चाहिए ना ?)”, — मेरी छोटी बेटी अनिंद्या ने कहा था !
मैं हँसी , “ऐसा थोड़े ही होता है !“
“वीरांगना या गौरांगिनी” ? — ये दो नाम ! उसने मुझे चुनने को कहा !
“काली का नाम गौरांगिनी?” — मैं हँस हँस कर दुहरी हो गई !
“Don’t be a racist and aparthied, Mommy” ( रंगभेदी और जातिवादी मत बनो, माँ ), कौन कहता है कि भूरी लड़की का नाम “गौरांगिनी” नहीं हो सकता ?
हाँ ! वो लड़की ही थी हमारी ! उसकी छोटी दीदी ने उसका नाम “वीरांगना” रखा और मुझे मानना पड़ा ! आखिर वो अनिंद्या की ही थी, उसकी ज़िद पर लाई गई ! 3 साल बाद अनिंद्या अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर घर गई और उसकी वीरांगना, बैंबी ने इस दुनिया को विदा कह दिया! मानो वो पिछले 3 सालों से उसके ही प्रतीक्षा कर रही हो !
वो हम सबका इंतजार करती रही ! अपनी दोनो बहनों का और उनके पीछे पटना से दिल्ली की दौड़ लगाती अपनी माँ का, यानि मेरा ! जब भी कोई घर से जाता, रोज़ वो उस भारी भरकम गेट के नीचे अपना मुँह डाले सारा दिन बैठी रहती, महीनों तक ! दो साल बीत गए ! मैं नहीं लौट सकी !
“वीरांगना” ने दो बार कैंसर को मात दी! घर की तरफ आँख उठाने वालों में खौफ का पर्याय थी वो ! और, ना जाने कितने लोगों को उससे प्यार हो गया था ! लोग कहते, मित्रान्या (मेरे घर का नाम) की तरफ मत जाना, वरना भेड़िया चीर कर रख देगा ! उनको क्या पता था, कि वो एक मासूम मृगछौने सी थी, जिसे सीधे हमारे हाथों से खाना और चुल्लू से पानी पीना पसंद था !
हम उसे भला क्या प्यार करते ? इंसान का प्यार स्वार्थ है ! लेन-देन, वस्तु-विनिमय — हम किसी जीव को तभी तक प्यार करते हैं जब तक वो हमारे काम आता है ! जब भी वो अपने पंजों में मिट्टी लिए घर में घुसने की कोशिश करती, मैं उसे दुत्कार कर भगाती ! कहीं वो जर्मस् (germs) ना लाए घर में, मेरे बच्चे ना बीमार हो जाएँ …बच्चे बीमार हों ना हों, माँ बेईमान हो गई !
जानवर का प्यार ऐसा नहीं होता ! उसके लिए मैं बस एक ही थी ! मुझे बांटा नहीं उसने ! जब भी मैंने उसे चोट पहुँचाई, उसने मेरे बदले मेरे आस-पास बैठे लोगों पर आक्रमण किया ! इस पूरी दुनिया में सिर्फ वो इकलौती थी जिसने मुझे कभी चोट नहीं पहुँचाई ! और, उसके लिए भी बस एक मैं ही थी जिसे उसने कभी चोट नहीं पहुँचाई !
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने अपनी मृत्यु शय्या स्वयं चुनी थी ! वाण शय्या … तीरों का बिछौना ! हिन्दू धर्म भी यही कहता है, कि अंतिम यात्रा धरती पर, कुश शय्या पर, खुले आकाश के नीचे आरम्भ होनी चाहिए !
उसने अपनी मृत्यु शय्या खुद चुनी! भीष्म की तरह! वो रात को ना जाने कब अपने कमरे से निकली और बगीचे के सबसे साफ, सुंदर कोने में, नई उगी हरी दूब पर सो गई ! सदा के लिए ! हरसिंगार के पेड़ ने पहली बार फूल बरसाये हैं इस साल ! गमले में एक नन्हा सा अड़हुल (hibiscus) भी उगा उसके नाम का ! दूब के बिछौने पर जैसे एक टुकड़ा स्वर्ग उतरा था उस सुबह, उसकी अगवानी को !
दो बार कैंसर को मात देने वाली वीरांगना किसी मामूली सी, अनजान सी बीमारी से हार गई ! हम दो पैरों पर चलते और चार कंधों पर अंतिम यात्रा करते हैं! पर, चार पैरों वाले जीवों को कंधे नसीब नहीं होते ! उसे भी नहीं हुए ! सुना, कि उसे एक क्रेन पर उठाया गया ! जैसे हल्की-फुल्की बैंबी हवा में उड़ रही हो ! उसकी बड़ी-बड़ी भीगी-भीगी सी आँखें दिखतीं हैं मुझे ! जैसे कह रही हों …
महाप्रयाण के अंतिम क्षण
मैं नहीं चढूँगी कंधे चार
हल्की-फुल्की हूँ इतनी, कि
उड़ जाऊँगी पंख पसार !
ये रात भीगी सी है ! आँखो में आंसू , पन्ने पर फैली स्याही, मन में आत्मग्लानी और बहुत सारा दुख ! वो क्यों नहीं हट जाती आँखो के सामने से ?
इस दिवाली फिर से मित्रान्या में अंधेरा होगा !
अलविदा वीरांगना …बैम्बी ! तुम हमेशा रहोगी ! दिल में फ़िक्र बनकर, ज़बान पर ज़िक्र बनकर…आँखों में आंसू बनकर और कलम से स्याही बनकर बहोगी, हमेशा !!!
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